कठपुतली
कठपुतली
हम कौन हैं
कोई नहीं जानता
हमारे इंसानियत का
वज़ूद क्या है
इसे कोई नहीं पहचानता।
कठपुतली बनकर
रह गयी है ज़िन्दगी सबकी
इन्सान अपने वश में ख़ुद नहीं
सिर्फ एक डोर के सहारे
वह है नाचता !
संस्कार, चरित्र
और धर्म को उसने
हो जैसे ताख पर सब रखा
जिसे देखो वही
गलत राह पर है खड़ा !
