कठिन युद्ध है किन्तु विजय तो
कठिन युद्ध है किन्तु विजय तो
कठिन युद्ध है किन्तु विजय तो,
सत्य अहिंसा की होगी.
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सुलग रही हैं दशो दिशाएँ,
नफरत के अंगारों से.
गूँज रही है धरा घृणा की,
तकरीरों से नारों से.
लेकिन सभी भेड़िये बहशी,
फिर भी निश्चय हारेंगे,
जिनकी मख्खन रोटी ऐसे,
दंगों से चलती होगी.
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अपने-अपने झंडे लहरें,
अपने तम्बू डेरे में,
रंग तिरंगे के तीनों ही,
डूबे घुप्प अँधेरे में,
लेकिन सच का सूरज फिर से,
पूरब तट पर चमकेगा,
अंधी नफरत ठौर ढूँढ़ती,
छिपने को फिरती होगी.
