करूणामयी
करूणामयी
स्वार्थी से आंसू
छलकें बस स्व दुःख में
पर पीड़ा से रहें परे
छोटे से दायरे में सिमटें
मन की संकरी गलियों में
आने न पाए कोई
करूणा विहीन मन
कैसे निर्मल होए ?
परदुःख मन में जो बसाए
असीम करूणा की गंग बहाए
तन-मन खरा सोने सा होए
पर दुःख जब वो दिए मिटाए।
