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Sheetal Agarwal

Others

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Sheetal Agarwal

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गीली शामें

गीली शामें

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रिमझिम सी, झिलमिल सी

बरसी बारिश की बूंदें

तन-मन जलाती धूप

अब रह गई पीछे


इन गीली शामों में

भीग जाए‌ मेरा मन

कभी यादों से ख़िले

कभी मुरझाए मेरा मन


बूंदों संग धूली मिलन

सारा समा महका गया

पेड़, नदियां, परबत, पंछियां

और मनोरम बना गया


रंग बिरंगे छाते, बरसाती

भागते, भीगते, बचते लोग

बरसी यूं बरखा रानी

क्या आसमान मनाए सोग?


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