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shekhar kharadi

Inspirational Others

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shekhar kharadi

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कृपा दृष्टि

कृपा दृष्टि

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ऐ कैसा खेल है मानस मनोवृत्ति का

प्रेम-दया-संवेदना हृदय से क्यूं ?

प्रतिक्षण टूट टूटकर पाषाण बन चुकी है

जन जन में, नस नस में खिला है

असत्य-स्वार्थ-द्वेष-प्रपंच का कंटक वटवृक्ष

बेख़ौफ़ राही पर आग उगलता रहा

हे महात्मा बुद्ध तेरी कृपा दृष्टि

जरा समस्त सृष्टि पर बरसा दें ।


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