कोशिश.....
कोशिश.....
प्यार को मेरे गुनाह कह यूं तू मुझे बरबाद ना कर,
बहुत अरसों से कैद रखा था नफरतों में खुद को,
अब तू मुझे आजाद तो कर...
जैसे तुम पास आने को मेरे तड़पी थी,
वैसे मैं भी यहाँ तड़पता रहा,
आज मैंने खुद ही दर्द के पिंजरे से,
आजाद होने की कोशिश की है,
तू यूँ फिर मुझे उसूलों के जंजीरों में कैद तो ना कर.......
सोच समझकर कोई साजिश ना की थी,
बस बहकते बहकते मैं तुझमें बहक गया,
तुम नाराज हो अपने आप से शायद,
मैं जिंदा हुआ हूँ ,
तेरी एहसासों ने जीने के लिए नयी साँसे दी हैं मुझे,
अब तुम ही यूं खुद से, हारकर मेरी साँसों को यूं दफन तो ना कर......
