कोरोना
कोरोना
कोई अहमियत ही नही रही जिंदगी में कोरोना के बाद ,
डरे डरे से रहते हैं अपने ही घर में कोरोना के बाद,
बहूत घमंड था गाड़ियों बंगलो का,
धूल खा रही है पड़े पड़े कोरोना के बाद,
बरांडेड कपड़े साड़ियाँ व सूट,
लूँगियों में पड़े हैं कोरोना के बाद,
घर का खाना ना भाता था उन्हें,
खिचड़ी खा रहे है कोरोना के बाद,
किंग मेकर कहते थे अपने आप को,
बर्तन मांज रहे हैं कोरोना के बाद।
डरा नही रही हूँ मैं तुम्हे कोरोना के नाम पे,
अब जब इंसान बन गए हो तो बदलना नहीं कोरोना के बाद।