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Ravi Jha

Tragedy

3  

Ravi Jha

Tragedy

कोरोना

कोरोना

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वक्त जैसे की ठहर गया

हर प्राण जैसे सिहर गया

नवचेतन को ये विस्मय है 

आखिर ये कैसा समय है?


पंक्षी उन्मुक्त गगन विहारे 

मानव हो क़ैद यह दृश्य निहारे

पास रहकर भी अब दूरी है 

आखिर क्यों ऐसी मजबूरी है?


सात्विकता का बहिष्कार किया 

प्रकृति का तिरस्कार किया 

लो फिर प्रकृति ने प्रहार किया 

महामारी का विस्तार किया।

समझ सको तो समझो इसको

परमाणु से तो तुम जीत गए


हे! महाशक्तियों है चुनौती तुम को 

अरे! विषाणु से तुम हार गए।

हे! आर्यावर्त के प्राण सुनो

धानी की फरमान सुनो

अथाह धैर्य का प्रमाण दो

कुछ दिन तन को विश्राम दो।


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