कोरोना काल की कविताएं-1
कोरोना काल की कविताएं-1
चार दिवस बीत गये, बीती दस तारीख।
वेतन के खाते हुए, चुसे हुए से ईख।।
लाॅक डाऊन की सजा, भोग रहे परिवार।
बिन वेतन कैसे चलें, खर्चे सीमा के पार।।
संकट में हैं सेठ जी, संकट में मजदूर।
पुणमासी कब की गई, अब मावस बेनूर।।
अगर यही चलता रहा, नहीं है वो दिन दूर।
मालिक नौकर साथ में, बन जायेंगे घूर।।
कब तक जमा पूंजी से, सींचे कुल के खेर।
खेती बाड़ी कुछ नहीं, हम है कौन कुबेर।।
जो कुबेर हैं यहां पर, खड़े हमारे साथ।
शायद कोई धनवान, रख दे उन पर हाथ।।
एक बार अब और कर, शासन सब कुछ बंद।
ईद दीवाली तब मने, हों प्रसन्न जयचंद।
