STORYMIRROR

अनिल श्रीवास्तव "अनिल अयान"

Tragedy

4  

अनिल श्रीवास्तव "अनिल अयान"

Tragedy

कोरोना काल के दोहे

कोरोना काल के दोहे

1 min
54

स्टेटस सबका गिर गया, हुए आर्थिक तंग।

खुद से खुद की चल रही, अनचाही सी जंग।


प्राइवेट हो नौकरी, काहे का फिर रोग।

आधे वेतनमान में, भिड़ा रहे सब जोग।


कोरोना के काल में, बजते सबके कान।

मालिक हो व फिर नौकर, सारे पड़े उतान।


खर्चे भारी पड़ गये, कांधे सहें न बोझ।

रुपया भर है खर्च अब, आठ आने मे रोज।


नौकरशाही में दबे, नौकरी पेशा लोग।

अपने किये का सब जन, रहे यहां पर भोग।


सरकारी व प्राइवेट, सबके हैं परिवार।

एक यहां दामाद सा, दूसरा निराधार।


तीन महीनों में यहां, खुली सभी की पोल।

कौन यहां पर ठोस है, कौन महज है खोल।


सुख-दुख का आगमन, होता है हर बार।

एक तेज गति से भगे, दूजा मंद गति पार।


साहस अपना साथ में, लेंगे यह पल काट।

खरी धूप में चल रहे, लेकर सिर में खाट।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy