कोलाहल
कोलाहल
बियाबान अंधेरे के गहन जंगल में कोलाहल क्या है
कोई बस्ती होने प्रमाण या सूर्योदय होने का संकेत
जो भी हो बढ़ना था कोलाहल की ओर एक उम्मीद
जो थी कोलाहल में जीवन के वजूद की बढ़ता बढ़ता गया
बढ़ता गया पाया खुद को बस्ती में रौशनी में कोलाहल तो
अभी भी है जंगल से भी तेज अंधेरे से भी तेज गूंजता हुआ
तरह तरह की आवाजों में गूंथा हुआ ज्ञान की बात
अज्ञानता की बात इतिहास की बात भविष्य की बात
आपस में मिलकर कोलाहल का सृजन कर रहे हैं
इस कोलाहल में मेरा भी शोर है और मैं खुद भी अनभिज्ञ हूँ
अपने शोर से और कोलाहल अजीब सा लगता है
अजनबी सा लगता है क्या कोलाहल से इतना प्रेम सम्भव है
कि वो बोल उठे जैसे कभी-कभी बोल उठते हैं मंदिर में देवता।
क्या कोलाहल में से अपने हिस्से के शोर को अलग कर हम
पहचान सकते हैं कोलाहल में अपने को।
सम्भव है सम्भव है कोलाहल का प्रेम में बदल जाना
आखिर जीवंतता का प्रमाण है कोलाहल
और जीवन है तो सबकुछ सम्भव है।
