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Niharika Singh (अद्विका)

Action Tragedy

5.0  

Niharika Singh (अद्विका)

Action Tragedy

कोख की व्यथा

कोख की व्यथा

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पुनः शहीदों के रक्त से लाल हुई

भारत मां की कोख की व्यथा लिखूं,

या देश पर शहीद होने वाले

जवानों की वीरता की गाथा लिखूं।


भाई के शव पर बिलखती

बहन के आंसुओं का हिसाब लिखूं,

मांग रहे जो मां के आंसू

उन आंसुओं का क्या जवाब लिखूं।


उजड़ती मां की कोख की

क्रंदन करती निशब्द ध्वनि लिखूं,

खो गई जो शोकाकुल होकर

पुनः लौटकर आए मधुर वाणी लिखूं।


पथराई हुई पिता की आंखों की

अव्यक्त वेदना की अमर कहानी लिखूं,

अनाथ हुए बच्चों की

बेबस बेसहारा भटकती जिंदगानी लिखूं।


मिट चुका जो मांग का सिंदूर

उस सिंदूर की करुण पुकार लिखूं,

खाली सुनसान पड़ा जो मांग

सिंदूर से बेहिसाब उनका प्यार लिखूं।


बाँहों में भर पति का शव

पत्नी का करुण क्रंदन स्वर लिखूं।

पति की याद में पथराई

विधवाओं का अनंत इंतजार लिखूं।


खोकर भाई को, भाई के

दिल का बेशुमार हाहाकार लिखूं,

उनके दिल में बने जख्म का

उठते दर्द और उसका आकार लिखूं।


इंसां के रूप में शैतानों की

हैवानियत का वीभत्स दास्तां लिखूं,

काला करतूत करने वालों को

इंसानियत का देकर वास्ता लिखूं।


दहशत गर्दियों के बेरहमी का

कब तक और कितना मंजर लिखूं,

कायर चोरों की भांति

पीठ पीछे से भोंकते खंजर लिखूं।


बारूद के ढेर पर बैठी

संपूर्ण दुनिया की विवश कहानी लिखूं,

कुछ ना कर पाने की

उसकी कमजोरी अपनी जुबानी लिखूं।


घाटी में बारूदों की उड़ी धूल

दिल्ली में उड़ते राजनीति के चिथड़े लिखूं,

नेता सैंकते अपनी रोटियां

ये कैसे इंसानियत को भूले बिसरे लिखूं।


इंसानों की बस्ती में देखो

बसता नहीं कोई यहां इंसान लिखूं,

सौदा करते रिश्तों का देखो

हर अली गली में घूमते बेईमान लिखूं।


देश पर कुर्बान हुई जो सेना

शीश झुकाकर उन चरणों को नमन लिखूं,

खोई जिन्होंने अपनी संतान

उन माता-पिता के चरणों में प्रणाम लिखूं।।


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