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Prafulla Kumar Tripathi

Abstract

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Prafulla Kumar Tripathi

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कोई क़रीब होता !

कोई क़रीब होता !

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हमने सहे हैं ज़िंदगी के ,

गम भी इस तरह।

चुपचाप अलविदा हूँ मैं ,

अब मौत की तरह।।


तुम ना हो मेरे पास ,

मगर याद साथ है।

यादों को ढोता फिरता हूँ

अब शौक की तरह।।


सपने बिखेरे तुमने जो ,

मैंने सजा दिए।

अब मांगती क्यों उनको ,

खरीदार की तरह।।



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