कंकाल
कंकाल
रूप रंग चमकाय के
काहे तू इतराय,
जो तू चाहवे जीवणा
तो "अंतस"को चमकाय।
पद, प्रतिष्ठा, धन वैभव
कुछ भी संग न जाय,
रह जाना कंकाल बस
जब प्राण पखेरू उड़ जाए।
सारे जीवन लगा रहा
कंकड़-पत्थर समेटाय,
प्रभु नाम स्मरण छोड़ कर
अब फिर क्यों मन घबराये ?
एक कंकाल औ लोटा राख
अपने पास रखवाये,
जिससे अपने अंत को
कभी भूल न पाए।
नाते, रिश्तेदार सब
श्मशान घाट तक जाएं,
सिर्फ धर्म ही साथ रहे
जब तू कंकाल बन जाये।
इस लोक को सँवार लिया
अब परलोक को तू ध्याय,
जाना एक दिन वहीं है
क्यों मन इतना यहां रमाये।