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Anand Prakash Jain

Romance

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Anand Prakash Jain

Romance

कमरे के भीतर लगा दर्पण

कमरे के भीतर लगा दर्पण

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मैं तेरे कमरे के भीतर लगा दर्पण हूं

मुझमें तू हर रोज दिखती है,

कभी उदास सिकुड़ी कली की सी

कभी नादान इठलाती तितली की सी,

कभी मुस्काते पसरे गुलाब की सी

कभी बेचैन तड़पती शफरी की सी,

कभी अल्हड़ मतवाली उर्मि की सी

कभी कातिल बलखाती भुजंगी की सी,

कभी शांत स्वछंद परिंदे की सी

कभी बेबाक कनुप्रिय मृदंग की सी,

कभी स्थिर सकेंद्रित बगुले की सी

कभी अनवरत चलित तटिनी की सी,

कभी चंचल मनमौजी चपला की सी,

मुझमें तू हर रोज़ दिखती है,

मैं तेरे कमरे के भीतर लगा दर्पण हूं,

मुझमें तू हर रोज दिखती है


##शफरी= मछली, उर्मि= लहर,

भुजंगी= नागिन, चपला= बिजली


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