कलम
कलम
विभिन्न रंगों की हलाहल पीये रहती हूँ !
जो जैसा मुझे कहता है मैं मदमस्त हुए उनकी ही बातें सुनती हूँ !!
जिस रंग से जो लिखना चाहे उस रंग से मैं लिख लेती हूँ !
जिस रूप में ढालो तुम मुझको मैं वैसे ही बन जाती हूँ !!
खुशियों की बातें लिख डालो या प्रियतम को खत लिख दो !
कविता, लेख, साहित्य की रचना और प्रशस्ति को लिख दो !!
लिखवा लो कुछ भी मुझसे मैं कहना सब की मानूँगी !
अर्पण सब कुछ कर दिया मैंने स्वामी को पहचानूँगी !!
राजा के हाथों में पड़कर रानी मैं बन जाती हूँ !
रंकों के हाथों में पड़कर निःशब्द बन अकुलाती हूँ
समय -समय पर यह छोटी हो कर अपना रूप दिखाती है !
सब रंगों की मिश्रित देवी "कलम" सदा कहलाती है !!
