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Kumar Sonu

Abstract Tragedy Crime

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Kumar Sonu

Abstract Tragedy Crime

कल्कि कलियाँ कृष्ण से

कल्कि कलियाँ कृष्ण से

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हे कृष्ण ! 

एक अर्ज सुन ले हमारी।

हर भारत माँ की बेटी को,

दे दे द्रौपदी वाली साड़ी।


तू साक्षात बिराजमान था तब भी,

एक दुशासन पड़ रहा था भारी।

यहाँ तो चप्पे चप्पे पर मौजूद,

दुशासन की फ़ौज सारी।


हे कृष्ण !

आपदा आन पड़ी है भारी।

ख़ामोश होती नवजातों की किलकारी।

शर्म लिए आँखों में, सुदर्शन ढूंढ़ता हूं,

कानों में चुभती है मार्मिक चित्कारी।


हे कृष्ण !

छोड़ देना वंशी तुम्हारी।

असुरों के अट्टहास से, 

दब गई सुरीली सूर प्यारी।

त्राहि त्राहि के राग अलापती हैं।

मासूम असहाय सखियां तुम्हारी।



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