कली जो मुरझा गयी
कली जो मुरझा गयी
मासूम बचपन कहां कुछ सोचता है
कोई हालात नहीं
कोई जज्बात नहीं,
अपनी ही मस्ती में ये तो रहता है।
एक दरिंदा जीवन में ऐसा आया,
उसने कुछ ना सोचा ना समझा
बसअपने काम वासना में
उस बच्ची के खेलने की उम्र में
अपनी गन्दी मानसिकता
के आगे उसके जीवन को
कुचल डाला
जो फूल थी,जो कली थी
उसे खिलना था
वो हमेशा के लिए मुरझा गयी
उसे कुचल डाला तुमने,आखिर क्यों?
उसे क्या पता यह क्या है,? क्यों है?
उस दर्द को अपने साथ दिल में लगाए,
घूम रही होगी उसकी चीख पुकार भी,
नहीं सुनाई दी, या नहीं सुना तुमने?
जानबूझ कर उसके दर्द भरी चीत्कार
को उस बच्ची की मासूम बचपन का,
तू हत्यारा है.. हां.. बहुत बड़ा हत्यारा।
तू हत्यारा है उस बचपन का भी
जो उस मासूम सी बच्ची का हक था
तुमने उसके जीवन से मासूम बचपन
छीन लिया हमेशा,हमेशा के लिए
बन कर रह गया तू हत्यारा उस,
बच्ची के मासूम बचपन का
उस बच्ची की जीवन को कुचल
डालने का हत्यारा है तू,
हां,हत्यारा बनकर रह गया।
किसी के जीवन का
उसकी मासूमियतका
और खुद के जमीर का जो
तुम्हारे मन में एक बच्ची के दर्द
उसकी तड़प में भी न जागा था
तुम खुद के जमीर के ही नहीं
बच्ची के कोमल मन का भी हत्यारे हो।
