कितने चेहरे
कितने चेहरे
तेरे मेरे या दुनिया के,
चिंटू गोपी या मुनिया के,
कुछ उजियारे कुछ गहरे हैं,
गिनो ज़रा कितने चेहरे हैं,
एक चेहरे में प्यार मगर,
चेहरा दूजा गुस्से वाला,
एक चेहरा सभ्य सनातन,
दूजा रंग स्याह सा कुछ काला,
चेहरा घर के बाहर कुछ है,
अंदर घर के बदल गया,
कभी व्यर्थ की चिंताओं में,
चेहरा हो कुछ दहल गया,
एक चेहरा जिसमें सच्चाई है,
झूठ फ़रेबी एक चेहरा,
एक चेहरे में हिम्मत ,
डर के साए में दूजा चेहरा,
एक चेहरे में झलक खुशी की,
दूजे में ग़म की रेखा,
एक चेहरे में जुनून दिखे,
पर दूजे को थकते देखा,
एक चेहरा जिसमें लगन होड़ है,
आगे बढ़ने का जज़्बा गहरा,
पर दूजे में आलस्य निराशा,
हारा थका बुझा चेहरा,
एक चेहरे में परोपकार,
औरों के हित के सपने हैं,
दूजे में स्याह स्वार्थ लालसा,
कहां कोई फिर अपने हैं,
किस चेहरे में अच्छाई ,
किसमें स्याह सी परछाई,
ये दुरूह बड़ा ही समझ सकें,
किस चेहरे में है सच्चाई,
जिस चेहरे में प्रेम दिखा,
उसमें ही नफरत भी दिखती,
हर चेहरे पर कई मुखौटे,
परत वास्तविक ना मिलती,
तेरे मेरे सबके चेहरों पर,
भावों के कितने पहरे हैं,
अच्छा बुरा सभी है इसमें,
गिन ना सकें इतने चेहरे हैं।।
