कितना मरना पड़ता जीने के लिये
कितना मरना पड़ता जीने के लिये
कितना मरना पड़ता है जीने के लिए...
हर पल अपने अरमानों को रौंदना पड़ता है
हर दिन अनचाही बातें सुननी पड़ती हैं
हर रोज़ गलत बातें सहनी पड़ती हैं
कितना मन को समझाना पड़ता है
कितना मरना पड़ता है जीने के लिए !
हर रात आंसू की चादर ओढ़ते हैं
कितना समय त्याग देते हैं औरों के लिए
जो है हमारे सपनों के लिए
हर पल नाकामयाब कोशिश करते हैं
औरों को खुश करने के लिए
फिर हर रोज मरना पड़ता है जीने के लिए !
कितना कितना मरना पड़ता है जीने के लिए...
हर रोज सोचते हैं मरने के लिए
फिर भी कितना मरना पड़ता है जीने के लिए !
