किश्तों में जिंदगी
किश्तों में जिंदगी
आँखों में
चुभते हैं कई अजीब प्रश्न
इन दिनों
मेरी अभिशप्त आँखें और
ये आवारा सपने
आहटें अजीब और उनकी परछाइयां
लगभग उलझे हुए आदमी की शक्ल वाले
संबंधो के धागे
परेशान करते हैं मुझको
सकुचाता मन और
तन्हाई बहुत कुछ लील जाती
तोड़ जाती कितने भ्रम मेरे एकाएक यादें
अकेला कर देती
तमाम इच्छाओं की इमारत
गिरती हुयी सी लगती है
तमन्नाएं सारी छिन्न छिन्न
जी रहा हूँ यूं ही है
इन दिनों
किश्तों में ज़िंदगी अपनी।