एक शून्य
एक शून्य
साँसे मेरी थमने को है
आँसूंओ का सैलाब बहने को है
मुस्कान मेरी मानो गुजर सी गई
सभी तस्वीरें गिर कर बिखर सी गई
कुछ बचा नहीं सिर्फ
एक शून्य
पास आने में साये भी कतराने लगे हैं
फूल भी दूरियां बढ़ाने लगे हैं
चाँद भी दूर हो गया घने बादलों में
अब मुझसे
सूरज भी कहीं छिप गया आंधियों में
बचा नहीं कुछ भी
सिवाय शून्य के
रिश्तों की आहट भी उलझाती है मुझको
अपनों से जी घबराता
पथरा जाती आँखें कई मर्तबा
साँसे रुकी हुयी सी लगती
जब पास होता है सिर्फ.......एक शून्य