किसे अपना मिला
किसे अपना मिला
जिंदगी में किसको,कौन यहां पर अपना मिला है
सबको ही यहां पर दगा ओर बस दगा ही मिला है
उन शीशों से भी तस्वीर का चेहरा धुंधला मिला है
जिन शीशों में सदियों से हमारा ही बिम्ब मिला है
जिन से यकीन और विश्वास का गुलिस्तां खिला है
आजकल उन्ही लोगों से घर का आशियां जला है
जिंदगी में किसको,कौन यहां पर अपना मिला है
आज सर्प से ज़्यादा विष,लोगो के भीतर मिला है
उसका ही चेहरा आईने में सही सलामत मिला है
जिसका खुद का खुद से मन खुदबखुद मिला है
बाकी यहां अपना ही साया परायों संग मिला है
सच्चा,अपना मित्र भीतर अकेला रोता मिला है.