किसान
किसान
खेतों में लहराती सोने की बाली,
देखकर मुस्कुराता है उनका माली
सर पर साफा और पैरों पर ना चप्पलों की जोड़ी,
सर्दी गर्मी सब उसने है छोड़ी,
लहराती फसलों के लिए जिसने
खेतों में पसीने की खेली होली,
रोज़ अपनी भूख से जो है लड़ाता,
वही हमारे अन्नभंडारों को है भरता,
देखो विडंबना कैसी-
वही किसान फांसी के फंदे पर लटकता,
अपने हक़ के लिए क्यों अकेला है लड़ता,
विवश हो सड़कों पर आज है भटकता,
जय जवान ,जय किसान का नारा
एक बार फिर हम बुलंद करें,
केसरिया रंग में हम भी अपने को आज रंगे,
हो साथ उनके, संघर्ष पथ पर हम भी चलें।