"किसान की दुर्दशा"
"किसान की दुर्दशा"
पिया छोड़ो जा ऐसी किसानी,
जा में तो पर रओं है घाटो।
गर्मी भर हमने मूंग रखाई,
जब कटवें की बिरिया आई।
करई ने पायें सपाटो,
जा में तो पर रओं है घाटो।
बसकारे में धान लगाई,
दिन-दिन भर हम करत निदाई।
वर्षा/पानी ने दे दओं अब घाटो,
जा में तो पर रओं है घाटो।
ठण्डी में हमने गेहूं बुआये,
पानी यूरिया खूब बहाये।
ओलों ने कर दओ अब पाटो,
जा में तो पर रओं है घाटो।
पिया छोड़ो जा ऐसी किसानी,
जा में तो पर रओं है घाटो।
