किसान : 'अन्नदाता का धरा पर मान होना चाहिए'
किसान : 'अन्नदाता का धरा पर मान होना चाहिए'


अपनी क्षुधा का ध्यान न धर कर,
प्रचंड धूप, शीत, वर्षा में तपकर..
प्यासे कंठ और बिना स्वार्थ के,
इस धरा की प्यास बुझाता है..
ऐसे महान व्यक्तित्व का आभार होना चाहिए,
अन्नदाता का धरा पर मान होना चाहिए...
हर थाली में सजती मेहनत उनकी,
समझो अनमोल तुम कीमत इनकी..
जन जीवन की उदराग्नि मिटाने हेतु,
बंजर भूमि से भी सोना उगलाता है..
ऐसे स्वर्णकार का जग में भान होना चाहिए,
अन्नदाता का धरा पर मान होना चाहिए...
सरकार की योजनाएँ सिर्फ नाम की,
मिले लाभ न उनको तो किस काम की..
करे परवाह न कोई उनके अस्तित्व की,
हरित क्रांति का परचम जो लहराता है..
सरकार का उनकी तरफ रुझान होना चाहिए,
अन्नदाता का धरा पर मान होना चाहिए...