किस कालचक्र में सूत्र!
किस कालचक्र में सूत्र!
चीत्कार रहा कलेजे में पीड़ा,
कैसे निर्मल कर पाउँगा!
तिल-तिल कर ध्वस्त हुआ है हृदय!
किस मुँह से मुँह छुपाउंगा?
कोस नही! कुछ मील नहीं!
अनंत डगर का है सफ़र!
चल पड़ा मासूम को लेकर,
इस विपदा में भी था उसे किसका डर?
रुक जाता पर क्या वह खाकर?
भरता कहा है पेट, आस्वाशन पाकर!
निकल पड़ा इसलिए वह निर्भय!
अनजाने भयजाल में आकर?
घिस रही चप्पल की चोटी!
आंख के पानी से वह जग धोती!
चली जा रही घर की आशा में,
वह अबला थी, क्यों निर्बला होती?
पर दूर डगर था सफर बड़ा!
और गोद में था मासूम पड़ा!
बस हिम्मत लेकर साथ में,
फ़तेह करने जो काल खड़ा!
शर्मिन्दा होकर उसका शीश झुका था,
किस काल चक्र के बंधन में सूत्र!
गाड़ी का आसन जल रहा था,
जुता देख एक ओर बैल और एक ओर पुत्र!