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V. Aaradhyaa

Abstract Tragedy

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V. Aaradhyaa

Abstract Tragedy

किलकारी कैद है जहाँ

किलकारी कैद है जहाँ

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अशांति के हालात में अब ढील दो ज़रा ,

गहरे हुए हैं घाव बहुत उन्हें सील दो ज़रा ।


हमने शिलाओं पर लिखे पैगाम शांति के ,

पत्थर बनें हम मील के वो मील दो ज़रा ।


ये ठीक है यूक्रेन को नाटो वबा लगी ,

इस संगठन की विश्व को तफ़्सील दो ज़रा ।


अमरीकियों का काम ही है मौत बेचना ,

उनके इसी व्यापार को भी छील दो ज़रा ।


चट्टान तो आरोप की दोनों तरफ खड़ी,

इनको गला दे आज ऐसी झील दो ज़रा ।


किलकारियां बारूद के कुहरे में कैद हैं ,

इंसानियत के फ़र्ज़ की तामील दो ज़रा ।


दीवार अब हिलने लगी सारे जहान की ,

इस तीसरे संग्राम के पद कील दो ज़रा ।


दीपावली के पर्व सा रोशन रहे जहां ,

उपहार में मिष्ठान मीठी खील दो ज़रा ।


चाहते हैं सब विश्व का माहौल ठीक हो ,

 कैसा लगा बदलाव वो सबको बतला दो।



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