कीर्ति छंद
कीर्ति छंद
(१)
यमुना लहरें हरषाएँ।
मनमोहन चीर चुराएँ।।
सखि कौन सहाय हमारी?
मधुसूदन हे! गिरधारी!
(२)
शशि सा मुख तेज सु-राधा।
हिय मोहित मोहन साधा।।
कुमुदी सम ओंठ गुलाबी!
उर कोयल गावन लागी।।
(३)
मुरली बजती मधुभाषी।
हरि पावन की अभिलाषी।।
यह प्रेम बता कित लाया
हिय रोग नया दुख पाया।।
(४)
मनमीत बड़ा छलिया है।
खिलती बगिया कलियाँ हैं।।
हिय चोर चकोर हठीला।
मधुमास सुहास रसीला ll
(५)
नित जोहत बाट दिवानी।
चुभती अब रात सुहानी।।
विरहा दुख देह तुफानी।
लिखदी कह आप कहानी।।
(६)
खुद जीवन आग जलाया।
जबसे तुमसे हिय लाया।।
मछली सम मैं तड़पूँ रे!
दृग नीलम नीर बहे रे!