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Juhi Grover

Abstract

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Juhi Grover

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कई रातें

कई रातें

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मैंने जाग जाग कर काटी थी कई रातें, 

सारी रात आकाश के तारे गिन गिनकर, 

कभी खुद को बिछौना बना कर धरती पर, 

और कभी धरती को अपना बिछौना समझकर, 

सिकुड़ कर, डर कर, सहम कर, 

अतीत मेरा गुज़रा था सड़कों पर, 

हुआ करती थी तब मेरी, अपने आप से बातें, 

मैंने जाग जाग कर काटीं थी कई रातें।


जाग कर कटतीं हैं, आज भी रातें, 

मगर गतिमान समय के धुंधले अंधेरे पर, 

प्रगतिवादिता का ढोंग रचा कर, 

ऊपर वालों को कुछ दे दिला कर,

और नीचे वालों को थोड़ा डाँट डपटकर,

अतीत के याद आते ही ज़मीर को सुलाकर, 

अपने ही साथ भूलकर सभी रिश्ते नाते, 

मैंने जाग जाग कर काटीं थी कई रातें ।


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