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niraj shah

Abstract

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niraj shah

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ख्वाहिशों की सीढ़ी

ख्वाहिशों की सीढ़ी

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ख्वाहिशों की सीढ़ियों पर चढ़ कर,

कुछ ख्वाब लिखे थे बादलों पर,

ये सोचता रहा फिर मैं रुक कर, 

खुदा की निगाह पड़ेगी उन पर; 

तब हवाओं ने बदला रुख कुछ ऐसे, 

कि रह गए ख्वाब मेरे, बिखर करI


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