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विनोद महर्षि'अप्रिय'

Drama

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विनोद महर्षि'अप्रिय'

Drama

ख्वाबों की रानी

ख्वाबों की रानी

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हिरनी से दो नैना, नजर कुलांचे भरती

घायल करे दिल को तीखा सुरमा लगाती

लता सी मखमली उसकी बालों की लट

एक झलक से खुल जाएं हृदय के पट।


संगमरमर सा बदन, नागिन सी है चाल 

कमर हिलोरे ले ऐसे ज्यों सागर की लहर ,

खनकती चूड़ियां झुमके लगते जैसे ढाल,

चंचल वाणी सुधा सी, लफ्ज ढाए कहर,


सुरमई आंखें हजारों बातें करती

पायल की झंकार लगी इक साज,

घनघोर घटा रूपी मस्त तेरा यौवन

तड़ित सा ज्यों गिरे हृदय पर गाज,


वाणी में तेरे अमि का रस टपके

इक इक शब्द मोती सा है चमके

जब जब दीदार हो स्वप्न में तेरा

तुझे अपना बनाना चाहे दिल मेरा।


तू लगती सावन की बदली , मैं इक मोर

चले फिर उस डगर जिसका ना कोई छोर

तेरी यह जुदाई जैसे लाखो योजन की दूरी

मत तड़पा अब मुझे ओ मेरी स्वप्न सुंदरी।


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