ख्वाब
ख्वाब
इकट्ठे कर रखे हैं
जिंदगी की झोपड़ी में
प्रकाश के साये में
उम्मीद जिसमें संजोयी थी
एक नव निर्माण के लिए
कुछ पुरानी यादें
बनतीं है
पानी के बुलबुलो समान
फिर मन के विचार
कविता रूप में रचित
हो जाते है।
खास सवाल तो
शब्दों के रूप में
आ नहीं पाते
अर्थ उनको
दे नहीं पाते
जागो
ख्वाबों को साकार करते हैं
आज़ाद उनको करते हैं
मौसम को बदलते हैं
चिंतित चेहरों
को सतरंगी रूप में
आने देते हैं
रवि का उदय होने तक
भूतकाल के आगोश में भटकता
मौसम बेअसर
और उग आए हों पंख पैरों में
उम्मीदों के शिशु थामे हुए
बढ़ते रहो आगे ही आगे
ख्वाबों के सच होने तक।