ख्वाब
ख्वाब
ख्वाब आंखों में ही टूट जाते है।
जिंदगी ऐसे भी दिन दिखाती है।
इंसान सोचता तो बहुत कुछ है।
लेकिन जिंदगी कभी -कभी,
मझधार बनकर आती है।
ख्वाब आंखों में ही टूट जाते है।
जिंदगी की हकीकतें भी बहुत बेरहम है।
सब्र से भी कहाँ मंजिलें मिल पाती है।
ख्वाब बुनते ही रह जाते है।
पांव के नीचे से हकीकतें निकल जाती है।
ख्वाब आंखों में ही टूट जाते है।
ख्वाब देखने में कहां हर्ज है।
इनकी कोई कीमत कहां होती है।
शायद इसलिये सिर्फ ख्यालों में दर्ज होती है।
ख्वाब बस आंखों में ही ना रह जायें।
और जिंदगी मौत से बहुत आगे निकल जाती है।