खुशियों का ठिकाना
खुशियों का ठिकाना
कहां गई कहां गई मेरी खुशियां कहां गई।
इधर ढूंढो उधर ढूंढो कहां गई कहां गई।
कोई तो बताओ कहां है खुशियों का ठिकाना।
मैं सब जगह ढूंढ आई, मगर ना मिली खुशी ,कहीं ना मिला ठिकाना।
जब मैंने अपने आसपास अपने अंदर देखा ।
प्रकृति में चह चहाते पक्षी देखें
प्रकृति के सुंदर नजारे देखें।
बच्चों की मधुर किलकारियां सुनी।
मन में उमंग से भर उठा
सुबह उगते फूल देखें ।
आसपास का सुंदर वातावरण देख मन खुशी से भर उठा ,
मन ने कहा तेरी खुशियां तुझ में है ।
तू जिस में देखे उसमें है।
छोटी छोटी खुशियां ढूंढ ।
बड़ी बड़ी खुशियों के पीछे ना दौड़ क्योंकि छोटी खुशियां होंगी।
तो बड़ी भी पीछे-पीछे आ ही जाएंगी।
मन खुशी से झूम झूम उठा कि मुझे खुशियों का ठिकाना मिल गया था।
अब मुझे उसे ढूंढने की कोई जरूरत नहीं।
छोटी सी दुनिया छोटे-छोटे से क्षण ,खुशियों से भरपूर।
खुशियां बांटते चलो, ताकि किसी को खुशियों का ठिकाना ढूंढना ना पड़े।
क्योंकि खुशियां तुम्हारे अंदर छिपी है हर छोटी बात में छिपी है।
हर प्यारी मुस्कान में छिपी है।
तेरे मन की तमन्ना में छिपी है। जो कह रही है तू ढूंढती कहां।
मैं छिपी हूं यहां।
तेरे दिल के अंदर तेरी ख्वाहिशों में।
तेरे अंतर मन में।
छोटी-छोटी बातों में ।
तू मुझे ढूंढते चल।
मैं तुझे मिल जाऊंगी।
और तुझे खुश कर जाऊंगी।