खुशबू फूलन की महकाएं हर मन।।
खुशबू फूलन की महकाएं हर मन।।
यह कविता मैने एक लोकगीत की शैली में ढालने की कोशिश की है — इसमें गांव के मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू, फुलों की महक, गांव की सादगी की याद दिलाती है। इसमें सादी मगर गहरी भावनाओं वाली रचना, जिसे लोकधुन पर गाया जा सके।।
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"खुशबू फूलन की बोल पड़ी जो"
(एक लोकगीत की तरह)
खुशबू फूलन की महकाएं हर मन
जैसे पिया से बांधे, प्रीत का बंधन।।
गुलाबिया बोले रसिया से,
काहे तू इतना तड़पाए
"ले जा प्रीत बँधन में,
मेरे रंग में डूबे जइबू,
तेरे सपनन के चमन में।"
सुगंधिया बहे चुपचाप,
जैसे पिया के मन की बात।
चमेली झूले अँगना में,
रात के चाँद तले,
सफ़ेदी ओढ़े लाज सम्हारे,
सजनी बोले हले-हले।
सुगंधिया करे इशारा,
जैसे प्रीतन का सहारा।
रातरानी बोले संझा से,
"रैन जगी मैं जागूँ,
छुपके तुझसे मिलने को,
खुशबू बन के लागूँ।"
रैनिया महके धीरे-धीरे,
पिया पग चूमे बीरे-बीरे।
मोगरा बोले पूजा से,
"चढ़ा दो पिया के नाम,
मेरे फूलन में बसी है,
भक्ति का सच्चा धाम।"
सुगंधिया ले जाए मन,
जैसे चले कोई भजन।
सूरजमुखी बोले उगते सूरज से,
"तोहरे संग ही जियब रे,
तेरी जोत में खोई-खोई,
हर दिन मुस्कियब रे।"
ना होवे गंध मगर,
रोशनी बहे निर्झर।
कृष्णकमल बोले राधा से,
"प्रीत रचाई कान्हा संग,
मेरे फूलन में बसल रहत,
साँवरे की उमंग।"
भीनी खुशबू करे बतिया,
जैसे बाँसुरिया गावे राग।
फूलन की खुशबू बोल पड़ी,
मन के तारों को छेड़ गई।
कोई प्रीत में भींज गया,
कोई भक्ति में निचुड़ गई…
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स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित रचना लेखक :- कवि काव्यांश "यथार्थ"
विरमगांव, गुजरात।

