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ANKIT SHARMA (आज़ाद)

Abstract Romance

4.8  

ANKIT SHARMA (आज़ाद)

Abstract Romance

खुली क़िताब

खुली क़िताब

1 min
495


खुली किताब हूं


हर पन्ना था तुम्हें हासिल

हमेशा

हर लफ्ज जद में तुम्हारे था

और नुक्ते तुमने ही लगाए थे


हैरान हूं आज

कि कहते हो

तुम मुझसे अनजान हो


शायद

पढ़ ना पाए मुझको

या शायद

होगे उलझनों में

वक्त ही न मिला होगा

कभी छुप गया होऊंगा मैं

और कहानियों के ढेर में,

या कभी दिल में तुम्हारे

रहा हमसे गिला होगा,


पर पलट लेना कभी इसे

इक बार जब दिल करे,

हर अल्फाज़ में अरदास अपनी ही पाओगे,

अगर निकालने लगोगे मतलब

मेरी बातों के कभी

है वादा तुम सिर्फ मुस्कुराओगे


बहुत कुछ लिखा है मैंने 

बीच कतारों के भी

जिसको सिर्फ और सिर्फ

तुमको पढ़ना होगा

मैं जो हूं 

हां सदा रहूंगा वही

पर कैसा हूं

सिर्फ और सिर्फ 

तुमको ही गढ़ना होगा

खुली किताब हूं मैं

बस इक बार पढ़ना होगा।

 


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