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DR.SANTOSH KAMBLE { SK.JI }

Romance

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DR.SANTOSH KAMBLE { SK.JI }

Romance

खुदी मे

खुदी मे

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खुदी की जिद्द में,

खुदगर्जी में गुजरी।

जीतनी भी गुजरी 

ज़िन्दगी,बेखुदी में गुजरी


ख्वाहिशें हजारो थी,

और ख्वाहिशें ही रहे गई,

आस के संमुदर से,

कष्टी हमारी प्यासी ही गुजरी।


कोई साथ देता तो,

ज़िन्दगी हमारी भी सँवर जाती,

गद्दारो की भीड़ में

ज़िन्दगी हादसों में गुजरी।


गले मील कर गला काटने का

हुन्नर यहां हर कोई जानता है,

बेवफाई के सायों में,

कैसे कहे क्या गुजरी।


इधर हम है,उधर जमाना,

फासला कैसे कम हो,

हिसाब करने की चाह में

ज़िन्दगी बड़ी बेहिसाब गुजरी।


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