खुदगर्ज़
खुदगर्ज़
थक गयीं हूँ
खुदगर्ज इंसान के रवैये से
अब दोस्त ढूँढती हूँ
बेज़ुबान जानवरों में।
पक गयीं हूँ
दिखावे रिश्ते के रस्म से
अब सहारा ढूँढती हूँ
सच्चे परिवारों में।
हार गयीं हूँ
झूठे व्यवहार के झमेले से
अब सुकून ढूँढती हूँ
टूटी फूटी स्मृतियों में ।
