खुद को चाहने लगा हूं
खुद को चाहने लगा हूं
तेरे ईश्क की खुमारी में
जीने की इक नई आस जगी है
पल पल झुलस रहा हूँ
जरा बताओ कौन-सी आग लगी है
बस इक बार मुस्कुरा दो
फिर चाहे चुपके से निकल जाना
जाड़ों की मखमली घाम में
दुआवों में मोम-सी पिघल जाना
कुछ बचा नहीं तो क्या कहूँ
कहूँ भी क्या तुम ख़ुद समझदार हो
जिंदगी ने जो पटकथा लिखी है
क्या तुम ही इसकी मुख्य किरदार हो
बादलों से है यही गुजारिश
इस सावन थोड़ा जमकर बरसना
दिल उसका बहुत नाज़ुक है
उसकी गली थोड़ा संभलकर गरजना
इक बात बतानी है तुमको
खुद से अब मोहब्बत करने लगा हूँ
तुम क्या कहती हो पता नहीं
अपनी हसरतों पर अब मरने लगा हूँ!