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खता

खता

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कोई प्रेमी जो प्रेयसी से लगाये दिल खता क्या है

जो आपस में मोहब्बत हो मिलाए दिल खता क्या है

दिलों में ख्वाब को लेकर है जीते क्यूँ मोहब्बत में

हो आपस में बया मिलकर मोहब्बत तो खता क्या है।


मुसाफिर हम मोहब्बत में कभी इस दर कभी उस दर

सजाए आज जो महफिल तेरे दर पे खता क्या है

मिलन होगी जमीं की आसमा से वक्त है बाकी

जो हम बेवक्त मिल जाये ज़माने में खता क्या है।


तुम्हारी महफिले बागों में ही खिलती है ये कलियाँ

हमारे मन के बागों जो खिल जाये खता क्या है

तुम्हारे महफिल दर पे जमाना सर करे सजदा

जो सर अपना न सजदा हो मोहब्बत में खता क्या है।


कमलिनी से भ्रमर का प्यार तो इकरारे हसरत है

ये चातक प्यार में स्वाति को जो खता क्या है

चलाकर वाण नयनो का गिराया फिर परिन्दा है

मोहब्बत की ये किस्मत में बचा जिन्दा खता क्या है।


मोहब्बत में स्वयं इकरार और इन्कार करती है

करें हम प्यार और इजहार जो दिल से खता क्या है

स्वयं करती हो तुम रुसवा हो कहती मुझसे नफरत है

मोहब्बत का जो हसरत ले के आये दिल खता क्या है।


हो करती जो तुम नफरत तो रहो करती यूं ही प्रियवर

जो नफरत को मोहब्बत में बदल डाले खता क्या है।


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