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खफा हूँ

खफा हूँ

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खफ़ा होकर भी मैं तेरा रहा हूँ

खुदा जाने मैं ऐसा क्यों बना हूँ

गिला इसका नही दुनिया बुरी थी

शिकायत है कि तुमसे भी छला हूँ


जमाना ग़र कहे तो खाक़ परवाह

मगर जो तू कहे तो फिर बुरा हूँ

गुज़ारिश है मनाना छोड़ मुझको

खफ़ा हूँ आज मैं तुझसे खफ़ा हूँ


मुनासिब है मुझे अब मौत आए

मुहब्बत के सफ़र में थक गया हूँ

'लकी' मज़बूत समझे हैं मुझे सब

मगर अन्दर बहुत ही खोखला हूँ...!


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