खोल भी दो
खोल भी दो
सुनो ज़रा, कभी तो खोल भी दो,
बंद आंखों के दरवाज़ों को।
उठा के देखो इन पलकों की
चिलमन को,
यूँ झुका के परदों को गिरा भी दो।
यूँ न सिमटा करो अपने ही पहलू में,
अपना आँचल कभी लहर भी दो।
मेरे साये में कभी अपनी ज़ुल्फ़ों को,
खुली हवा में लहरा भी दो।
उफ्फ तुम्हारी मुस्कान, क्या कहूँ
पहेली सी लगती हो।
कभी दिल के राज खोलती,
कभी इतराती हो।
कभी तो मेरा नाम लेके,
अपनेदिल को भला भी दो।
एक डोर बंध गयी है तुमसे जो,
हज़ार पहरे चाहे लगा भी दो।
तेरे दिल मे लगे ताले की
चाबी है मेरा दिल,
इस दिल से दिल को मिला भी दो।