खोऐ खोऐ सपने आँखो के !!
खोऐ खोऐ सपने आँखो के !!
देखा नन्हीं आँखो को
तलाश थी जिन्हें रोटी की
ना था साया किसी अपने का
प्यास थी बस अपने पन की..
ढूंढे जो चांद रोटी का..
मांगे झोली फैलाऐ
कहाँ फिर होंगी रात चांदनी
कहाँ होंगे फिर सपने ?
ना द्वार शिक्षा के खुले
ना पकडे उँगली
कोई ले गया वहाँ तक ..
कि भविष्य बनते है इसी द्वार पर
कैसे फिर होंगी रोशनी ,
उजाला इस जीवन में..
रात दिन जिन आँखो में
तलाश हो रोटी की
कैसे भला ये आँखे देखेगीं
सुनेहरे भविष्य के फिर सपनें..