खंडहर।
खंडहर।


कोहरे ने लपेटा है शहर को
और दम घुट रहा है धुंआ में
इंसान कोई भी दिख नहीं रहा है
इंसानो के इस मेले में
दस मंजीला इमारतों के शहर में
ना जाने कहाँ खोया है आदमी।
बस घर बसे है शहरों में
और अपने खो गये है गैरो में
जज्बात रहे न यहाँ बाकी
लापता हो चुकी है इन्सानियत
खंडहरो में क्यों हुये है तब्दील
आबाद थे जो महलो में