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Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

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Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

खिलखिलाती दूब

खिलखिलाती दूब

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लालिमा दूर करती है कालिमा

बदल दें चाहे शब्द हम एक-दूसरे से

बदलता नहीं मतलब।

धान जब कर लेते हैं अपनी नींद पूरी,

लहलहाने को जागते हैं हर रोज़।

स्तुति करना कहाँ होता है आसान यहाँ,

उस तरह जब इको में सुन सके स्वर उसका।

आँसू बहते-बहते बदल सकें झरनों की कल-कल में,

चीखें बदल जाएं ठहाकों और मौन बदल जाए आनंद में।

सूर्य उगता है यही सब कहने को,

रात काली थी - अन्धेरा शाश्वत है।

आती है लालिमा फिर भी हर रोज़ 

ताकि हर दिन खिलखिला सकें हम सब

बन कर हरी घास सूरज की रौशनी में।



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