ख़्वाब
ख़्वाब
देखते है लोग ख़्वाब सोते हुए, हमने देखे ख़्वाब खुली आँखों से ।
लगन लग गई जब ख़्वाब को हकीकत करने की , तो हमने भी ठानी दूनियाँ से दो-दो हाथ करने की ।
बहुत रोका , बहुत टोका इस जहान ने , मगर हम मे थी सागर की लहरों सी मस्ती में बढ़ते गए अपनी मज़िँल की तरफ, लाखों तुफान आए, बवँडर आए, मगर हम ना इक पल भी घबराए ।
रख भरोसा खुद पर हमने आगे अपने कदम बढ़ाए , और पलकों पे सुहाने अपने ख़्वाब सजाए ।
.हाँ ख्वाब था मेरा लिखने का,....लिखती हूँ मैं कभी अपने, कभी औरों के मन की बातें,....कभी काले दिन, और कभी उजली रातें
बस इक ख़्वाब अभी बाकी है, मेरे जज़बात अभी बाकी हैं, मेरे अनछुए ख़्यालात अभी बाकी हैं , हसरते -दिल ये अभी बाकी है ।
कभी कोई लिखे मेरे भी जज़बात ,वो मेरा दिन ,वो मेरी रात, लिखे कोई मेरी कहानी, मेरे हालात ।
बन जाऊँ मै भी इक छोटा सा कोई सितारा फ़लक का , ऐसे हो जाऐं हलात

