ख़फ़ा-सी ज़िन्दगी
ख़फ़ा-सी ज़िन्दगी
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ज़िन्दगी मुझ को ख़फ़ा-सी लग रही है |
अजनबी मुझ को हवा भी लग रही है |
एक झोंका भी न आया उस गली से,
अब फ़िज़ा भी बेवफ़ा-सी लग रही है |
तोड़ कर दिल मेरा वो चल दिया,
उसकी वफ़ा अब दास्ताँ-सी लग रही है |
जाने कैसे बीतेगी ये ज़िंदगानी,
हर घड़ी इक इम्तहाँ-सी लग रही है |
मौत से जब से हुआ है दोस्ताना,
ज़िन्दगी कुछ मेहरबाँ-सी लग रही है |