गूँज -उल्फत ए इश्क़
गूँज -उल्फत ए इश्क़
उल्फत ए इश्क़
उल्फत के कुछ पल,
हमे भी नवाज़ दे खुदा,
की रूह तक भीग जाने को,
हम भी बेक़रार हैं |
ख्वाबों में उस उन्स को जी लिया बहुत,
की अब तो लबों की प्यास,
उस छुवन से ही बुझेगी |
आफताब को भी आने से रोक देंगे,
की इंतज़ार इतना किया है,
की एक रात भी उनमे सिमटने को कम है |
बिस्तर की सिलवटें गिनते थक जायेंगे वह,
की हर परत उस जूनून को ब्यान करती है |
की उस खुशबू को अपनी रूह से मिलाने,
की तड़प बढ़ती ही जा रही है अब तो |