ख़ामोशी
ख़ामोशी
आपने पूछा था हमसे
मगर हम कुछ कह ना सके
हमारी तो मजबूरी थी
काश ! आप समझ सके
दिन पर दिन गुजरते गये
तुम को सिर्फ ख़्वाबों में ही पा सके
मेरी ख़ामोशी बनी दिल की दुश्मन
जब छिन के नींद तुम ले गयी
तेरी हर अदा मुझे भा गई
मेरी हर धड़कन में तू समा गई
आरज़ू थी तुम्हें पाने की कसम से
सदियों तक साथ निभाने की
हमारे कुछ कहने से पहले
तुम आंखों से ओझल हो गई
दिल की बात दिल में ही रह गई
पता भी न चला तुम कहाँ खो गई !